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Essay On How I Spent My Summer Vacation

  Essay On How I Spent My Summer Vacation Title: How I Spent My Summer Vacation Introduction: Summer vacation is a much-anticipated time of the year when students like me get a break from their hectic academic routines. It provides an opportunity to relax, rejuvenate, and explore new horizons. Last summer, I embarked on a memorable journey that allowed me to learn, grow, and create lifelong memories. In this essay, I will share the details of how I spent my summer vacation and the valuable experiences I gained along the way. Body: 1. Exploring Nature's Majesty: The first part of my summer vacation was dedicated to immersing myself in the beauty of nature. I embarked on a backpacking trip to a national park known for its stunning landscapes and rich biodiversity. The pristine forests, cascading waterfalls, and towering mountains filled me with awe and appreciation for the wonders of our natural world. Hiking through the trails and camping under the starry skies gave me a sense of fr

महात्मा गांधी ग्राम स्वराज हिंदी निबंध | Mahatma Gandhi Gram Swaraj essay


Mahatma Gandhi Gram Swaraj essay


महात्मा गांधी ग्राम स्वराज पर निबंध 

हर गाँव हो सक्षम, आत्मनिर्भर और हो चारों ओर विकास, 

यही था महात्मा गांधी के सपनों का ग्राम स्वराज

 प्रस्तावना 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता महात्मा गाँधी जिन्होंने देश को आजाद कराने में अहम योगदान दिया, से आज सभी परिचित हैं। महात्मा गांधी जी एक ऐसी शख्सियत है जिनके उल्लेख के बिना इतिहास कभी पूरा नहीं हो सकता। महात्मा गांधी जी जीवन भर अपने आदर्शों पल चले और इन्होंने लोगों को भी आदर्शों और अहिंसा के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। महात्मा गांधी जी ने गावों के विकास में भी अहम योगदान दिया। इन्होंने गावों के विकास के लिए ग्राम स्वराज पर बल दिया। इनका मानना था कि भारत की असली पहचान गावों से है। 

महात्मा गांधी जी के ग्राम स्वराज का अर्थ 

 शांति के दूत कहे जाने वाले गांधी जी हमेशा से एक स्वराज भारत का सपना देखा करते थे। इनके अनुसार स्वराज का अर्थ आत्मबल का होना था। ऐसा स्वराज जो किसी भी जाति या धार्मिक उद्देश्यों को मान्यता नहीं देता, ऐसा स्वराज जो सभी के लिए समान हो। भारत देश के संदर्भ में इन्होंने जिस स्वराज की परिकल्पना की थी उसमे केंद्र में था गावों की आत्मनिर्भरता, गावों की स्वतंत्र, स्वावलंबी एवं प्रबंधन सत्ता। 

इनकी द्रष्टि में गावों की सम्पन्नता में ही देश की सम्पन्नता और गावों की स्वतंत्र पंचायती व्यवस्था में ही देश की सच्ची लोकतांत्रिक छवि छिपी थी। इनका मानना था कि भारत चंद शहरों में नहीं बल्कि सात लाख गावों में बसा है। इनके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए। 

गांधी जी का ग्राम स्वराज के लिए योगदान 

गांधी जी के अनुसार ग्राम स्वराज मतलब प्रत्येक गांव का स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होना था। तो ग्राम स्वराज के इसी सपने को साकार करने के लिए इन्होंने गावों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था पर जोर दिया। इसके अलावा इन्होंने खादी को बढावा देना और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का भी संदेश फैलाया। इन्होंने गावों में ग्रामोद्योग की उन्नति के लिए कुटीर उद्योगो को बढाने पर बल दिया जिसमें चरखा और खादी का प्रचार शामिल था। 

ग्रामोघोगों की प्रगति के लिए इन्होंने मशीनों की बजाय हाथ-पैर के श्रम पर आधारित उघोगो को बढाने पर जोर दिया ताकि ग्रामवासी स्वावलंबी बन सके। सही मायनों में देखा जाए तो गांधी जी का स्वराज गावों में बसता था और वो प्रत्येक गांव को भोजन और कपडे के विषय में स्वावलंबी बनाना चाहते थे। 

वर्तमान में ग्राम स्वराज की स्थिति 

आजादी के समय महात्मा गांधी जी ने जिस ग्राम स्वराज की कल्पना की थी आज वो उम्मीदों से कोसों दूर है। महात्मा गांधी का सपना गावों में कुटीर उद्योगो को बढावा देने का था मगर आज मशीनीकरण की हवा ने गांधी जी के परिकल्पित ग्राम स्वराज के साथ साथ गावों में सदियों से चल रहे हस्त उघोगो को भी तहस नहस करके रख दिया। आज मशीनीकरण ने वर्तमान के गावों में कुम्हार, बढ़ई, लोहार, बुनकर, बर्तन बनाने वाले ठठेरा, मोची आदि सभी के हस्त उघोगो को समाप्त कर दिया। 

आज इन उघोगो की जगह बड़ी बड़ी कंपनियों, फैक्ट्रीयों ने ले ली है। आज गांव आत्मनिर्भर होने की जगह उघोग-विहीन हो गए है और वहा के युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे है। इसके अलावा गावों की पंचायत व्यवस्था भी आज चुनावी राजनीति से अत्यधिक प्रभावित है। तो आज गावों की स्थिति गांधी जी के ग्राम स्वराज के बिल्कुल विपरीत है। 

निष्कर्ष 

अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि गांधी जी के ग्राम स्वराज का सपना जो आज हमें अधूरा लग रहा है वो पूरा किया जा सकता है। गांधी जी के ग्राम स्वराज में गावों का आत्मनिर्भर होना, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता, लघु उघोगो का विकास आदि शामिल थे। तो अगर इस दिशा में कदम बढ़ाए जाए तो अवश्य ही गांधी जी की ग्राम स्वराज की कल्पना हकीकत बन सकती है। 

गांधी जी के ग्राम स्वराज को एक बार फिर अमल में लाए, आओ गावों को आत्मनिर्भर बनाने की ओर कदम बढ़ाए. 


आत्मनिर्भर भारत और हिंदी पर निबन्ध

गांधी जी ग्राम स्वराज वं सपनो का भारत




"हमारा भारतू बने आत्मनिर्भर सबका हो विकास मही गांधी जी के सपनो का ग्राम स्वराज" 

आप सभी को मेरा नमस्कारा मेरा नाम है आज मैं आपके सामने ग्राम स्वराज पर महात्मा गांधी जी के विचार व्यकत करने के लिए उपस्थित हुई है। जैसा की हम समी जानते है कि हमारे राष्ट्रीय पिता ने भारत मै राम राज की कल्पना की थी । 

गाँधी जी के "स्वराज" की अवधारणा अत्मन्त मापक है। स्वराज का शाब्दिक अर्थ है स्पशासन भा अपना राज्याभारत के राष्ट्रीय आंदोलन के समम प्रचालित मह शब्द आत्म-निर्णमूतथा स्वाधीनता की मांग पर बल देता था। गांधी जी ने सप्रथम 1920 मै का कि मेरा स्वराज भारत के लिए संसदीय शासन की मांग है। गाँधी का ग्राम स्पराज 'निर्धन का स्वराज है जो दीन-दुखियो के उद्धार के लिए प्रेरित करता है। 

"देखा था सपना जिसका गाँधी जी ने वही भारत हमे , सक्षम, आत्मनिर्भर बनाना होगा" 

गाँधी जी के शब्दो मै स्वराज एक पवित्त और वैदिक शब्द है गाँधी जी देश के विकास को गांवो से प्रारम्भ करना चाहते हैं। देश के विकास का प्रथम सूत्र गाँप है, नापी मे स्वराज प्रणाली को विकसित कर के उसे पूर्णरूप से सक्षम बनानाही गांधी जी के अर्थो मै स्वराज था। 

ग्राम स्वराज गांधी जी के अहिंसक सामाजिक और आर्थिक मवस्था पर आधारित होगा, जहाँ कारीगरो द्वारा आपश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जारगा। आदर्श गांव मूल रूप से आत्मनिर्भर होन चाहिए जिसमे भोजन, कपड़े एखादी), स्वच्छ पानी, स्वच्छता, आवास, शिक्षा और सरकार सहित अन्य आवश्यकताओ का प्तावधान हो। 

भारत जैसे एक विकासशील देश की उत्तर कोरोना काल मे आगे की नीति भह होना चाहिए कि पह गांधी जी के ग्राम स्वराज और स्वदेशी का अनुसरण करेराकमोकि भारत के गांव सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण ईकाई है। न्चा अतः मैं अपनी वाणी फी विराम देते हुए दो शब्द भारतीय नागरिको लिए कहना चाहूंगी'. 

नया भारत आत्मनिर्भर संकल्प 
पर उमाधारित हो, जन-जन में 
यहे  संदेश जारी हो"



महात्मा गांधी ग्राम स्वराज हिंदी निबंध


महात्मा गांधी का मानना था कि अगर गांव नष्ट हो जाए, तो हिन्दुस्तान भी नष्ट हो जायेगा। दुनिया में उसका अपना मिशन ही खत्म हो जायेगा। अपना जीवन-लक्ष्य ही नहीं बचेगा। हमारे गांवों की सेवा करने से ही सच्चे स्वराज्य की स्थापना होगी। बाकी सभी कोशिशें निरर्थक सिद्ध होगी। गांव उतने ही पुराने हैं, जितना पुराना यह भारत है। शहर जैसे आज हैं, वे विदेशी आधिपत्य का फल है। 

जब यह विदेशी आधिपत्य मिट जायेगा, तब शहरों को गांवों के मातहत रहना पड़ेगा। आज शहर गांवों की सारी दौलत खींच लेते हैं। इससे गांवों का नाश हो रहा है। अगर हमें स्वाराज्य की रचना अहिंसा के आधार पर करनी है, तो गांवों को उनका उचित स्थान देना ही होगा। ग्राम स्वराज को लेकर उनकी चिंता रही है।

27 साल पहले हमने गांधी के सपनों को सच करते हुए पंचायती राज लागू कर दिया है, लेकिन गांधी की कल्पना का ग्राम स्वराज अभी भी प्रतीक्षा में है। गांधीजी चाहते थे कि ग्राम स्वराज का अर्थ आत्मबल से परिपूर्ण होना है। स्वयं के उपभोग के लिए स्वयं का उत्पादन, शिक्षा और आर्थिक सम्पन्नता। इससे भी आगे चलकर वे ग्राम की सत्ता ग्रामीणों के हाथों सौंपे जाने के पक्ष में थे। 

गांधीजी कहते थे कि जब मैं ग्राम स्वराज्य की बात करता हूं तो मेरा आशय आज के गांवों से नहीं होता। आज के गांवों में तो आलस्य और जड़ता है। फूहड़पन है। गांवों के लोगों में आज जीवन दिखाई नहीं देता। उनमें न आशा है, न उमंग। भूख धीरे-धीरे उनके प्राणों को चूस रही है। कर्ज से कमर तोड़, गर्दन तोड़ बोझ से वे दबे हैं। मैं जिस देहात की कल्पना करता हूं, वह देहात जड़ नहीं होगा। वह शुद्ध चैतन्य होगा। 

वह गंदगी में और अंधेरे में जानवर की जिंदगी नहीं जिएगा। वहां न हैजा होगा, न प्लेगा होगा, न चेचक होगी। वहां कोई आलस्य में नहीं रह सकता। न ही कोई ऐश-आराम में रह पायेगा। सबको शारीरिक मेहनत करनी होगी। मर्द और औरत दोनों आजादी से रहेंगे। आदर्श भारतीय गांव इस तरह बसाया और बनाया जाना चाहिए जिससे वह सदा निरोग रह सके। 

सभी घरों में पर्याप्त प्रकाश और हवा आ-जा सके। ये घर ऐसी ही चीजों के बने हों, जो उनकी पांच मील की सीमा के अंदर उपलब्ध हों। हर मकान के आसपास, आगे या पीछे इतना बड़ा आंगन और बाड़ी हो, जिसमें गृहस्थ अपने पशुओं को रख सकें और अपने लिए साग-भाजी लगा सकें। गांव में जरुरत के अनुसार कुएं हों, जिनसे गांव के सब आदमी पानी भर सकें। गांव की गलियां और रास्ते साफ रहें। 

गांव की अपनी गोचर भूमि हो। एक सहकारी गोशाला हो। सबके लिए पूजाघर या मंदिर आदि हों। ऐसी प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं हों, जिनमें बुनियादी तालीम हों। उद्योग कौशल जो शिक्षा प्रधान हो। ज्ञान की साधना भी होती रहे। गांव के अपने मामलों को निपटाने के लिए ग्राम पंचायत हो। अपनी जरूरत के लिए अनाज, दूध, साग भाजी, फल, कपास, सूत, खादी आदि खुद गांव में पैदा हो।

इस तरह हर एक गांव का पहला काम यही होगा कि वह अपनी जरुरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए जरुरी कपास खुद पैदा करे। गांव के ढोरों के चरने के लिए पर्याप्त जमीन हो और बच्चों तथा बड़ों के लिए खेलकूद के मैदान हों। सार्वजनिक सभा के लिए स्थान हो। 

हर गांव में अपनी रंगशाला, पाठशाला और सभा-भवन होने चाहिए। गांधीजी यह भी चाहते थे कि प्रत्येक गांव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के मामले में स्वावलंबी हो, तभी वहां सच्चा ग्राम-स्वराज्य कायम हो सकता है। इसके लिए उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि जमीन पर अधिकार जमींदारों का नहीं होगा, बल्कि जो उसे जोतेगा वही उसका मालिक होगा। 

इसके अतिरिक्त, उन्होंने ग्रामोद्योग की उन्नति के लिए कुटीर उद्योगों को बढ़ाने पर बल दिया। जिसमें उनके द्वारा चरखा तथा खादी का प्रचार शामिल था। गांधी का मानना था कि चरखे के जरिये ग्रामवासी अपने खाली समय का सदुपयोग कर वस्त्र के मामले में स्वावलंबी हो सकते हैं। ग्रामोद्योगों की प्रगति के लिए ही उन्होंने मशीनों के बजाय हाथ-पैर के श्रम पर आधारित उद्योगों को बढ़ाने पर जोर दिया। 

गांधीजी द्वारा ग्रामों के विकास व ग्राम स्वराज्य की स्थापना के लिये प्रस्तुत कार्यक्रमों में प्रमुख थे- चरखा व करघा, ग्रामीण व कुटीर उद्योग, सहकारी खेती, ग्राम पंचायतें व सहकारी संस्थाएं, राजनीति व आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण, अस्पृश्यता निवारण, मद्य निषेध, बुनियादी शिक्षा आदि। गांधीजी का पूर्ण विश्वास सत्याग्रह में था। 

वे सत्याग्रह में जिस साहस को आवश्यक मानते थे, वह उन्हें शहरी लोगों में नहीं, बल्कि किसानों के जीवन में मूर्तिमान रूप में दिखाई पड़ता था। 'हिंद स्वराज' में वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं- 'मैं आपसे यकीनन कहता हूं कि खेतों में हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं, जबकि अंग्रेज और आप वहां सोने के लिए आनाकानी करेंगे। किसान किसी के तलवार-बल के बस न तो कभी हुए हैं और न होंगे। 

वे तलवार चलाना नहीं जानते, न किसी की तलवार से वे डरते हैं। वे मौत को हमेशा अपना तकिया बना कर सोने वाली महान प्रजा हैं। उन्होंने मौत का डर छोड़ दिया है। बात यह है कि किसानों ने, प्रजा मंडलों ने अपने और राज्य के कारोबार में सत्याग्रह को काम में लिया है। जब राजा जुल्म करता है तब प्रजा रूठती है। यह सत्याग्रह ही है।

गांधीजी की कल्पना के ग्राम स्वराज्य में आर्थिक अवस्था ही आदर्श नहीं, अपितु सामाजिक अवस्था भी आदर्श थी, इसीलिये वे सभी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन पर जोर देते थे। अस्पृश्यता व मद्यपान जैसी सामाजिक बुराइयों के वे घोर विरोधी थे। वे इन्हें ग्रामों की प्रगति में भी बाधक मानते थे। 

गांधी जी के ग्राम स्वराज का जो सपना आज हमें अधूरा लग रहा है, वह पूरा किया जा सकता है। गांधीजी ने ग्राम स्वराज की दिशा में जो तर्क दिए थे, उन पर अमल करने के पश्चात ही हम ग्राम स्वराज की कल्पना को साकार कर सकते हैं। 

गांवों का आत्मनिर्भर होना, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के प्रति जागरूक होना ग्राम स्वराज की पहली शर्त है। इस दिशा में हमें आगे बढ़ना होगा क्योंकि केवल सत्ता हस्तांतरण से ग्राम स्वराज की कल्पना पूर्ण नहीं हो सकती है। गांधी के विचार और कर्म केवल हमारे हिन्दुस्तान तक नहीं है बल्कि वे पूरे संसार के लिए सामयिक बने हुए हैं।

अहिंसा के बल पर दुनिया जीत लेने का जो मंत्र गांधी ने दिया था, पूरा संसार समझ रहा है। यह विस्मयकारी है कि गांधी ने एक विषय पर, एक समस्या पर चर्चा नहीं की है बल्कि वे समग्रता की चर्चा करते रहे हैं। वर्तमान समय में हम जिन परेशानियों से जूझ रहे हैं और शांति-शुचिता का मार्ग तलाश कर रहे हैं, वह मार्ग हमें गांधी के रास्ते पर चलकर ही प्राप्त हो सकता है। आज जिसे 



महात्मा गांधी ग्राम स्वराज हिंदी निबंध | Mahatma Gandhi Gram Swaraj Nibandh



महात्मा गांधी ग्राम स्वराज भारत गावों का देश है । इसकी श्रामीण संस्कृति प्राचीनतम है। दुनिया में अनेक संस्कृतियों के बीच भारतीय संस्कृति की अलग ही पचान है । गाँव सामुदायिक जीवन का श्रेष्ठ उदाहरण है वेदों का मत है विश्वं युष्टे अमि अस्मिन अनातुरम अर्थात मेरे गाँव में परिपुष्ट विश्व का दर्शन होना चाहिए। यह दर्शन बिना स्वराज के नही हो सकता है । महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा वैदिक विचारों का ही विस्तार है।

महात्मा गांधी के समग्र चितन एव दर्शन का केंद्र गाव ही रहै है। स्वराज एक पवित एंव वैदिक' शब्द , जिसका अर्थ है आत्मगासन और आत्मसंयम । गांधी जी के अनुसार, “ सच्चा | स्वराज भोंडे लोगों द्वारा सत्त प्राप्त करने से नहीं, बल्कि जन सत्ता का दुरूपयोग होता हो तब सब लौंगी इवारा प्रतिकार करने की क्षमता मे। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने के लिए भारत में ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं को स्थानीय विकास तथा स्थानीय प्रशासन का मुख्य आधार बनाया गया है। 

गांधी जी ने स्वराज की कल्पना एक पवित्त अवद्यारणा के सन्दर्भ में की थी जिसके मूलतत्व आत्मअनुशासन और आत्मसंयम । गांधी जी का स्वराज गांव में बसता था और वै ग्रामीण उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थें। खादी को बढ़ावा देना तथा पिर्देशी वस्तुओं का लि अष्ठियार उनके जीवन के आदर्श थे। 

गांधी जी का कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव' को अपने भोजन' व कपडे के विषय में स्वावलंबी बनाना है! एक ऐसे समय मष पूरा संसार बुनियादी वस्तुओं की खरीद के मिट संघर्ष कर रहा है लाब गांधी जी का ग्राम' - स्वराज एंव स्वदेशी का विचार ही हमारा सही भार्गदर्शन कर सकता  भारत जैसे एक विकासशील देश की उत्तर कोरीना काल में आगे की नीति यह होनी चाहिए की वह गांधी जी के ग्राम-स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा का अनुसरण करें। 

भारत के गांव सामाजिक संगठन की एक महत्तवपूर्ण इकाई है। अतः गांधी जी का स्वदेशी तथा ग्राम- स्वराज का नारा ही सच्चे अर्थो में भारत की आत्मनिर्भर भारत', के रूप में परिवर्तित कर सकता है अत: हमें वर्तमान समय में गांधी पर्शन कर पुनः एक नए दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है। । 


महात्मा गांधी ग्राम स्वराज हिंदी निबंध

"गॉव-गाँव में हो रहा रिश का प्रसार जनभागीदारी मे होरहा बापू का नाम स्वराज स्वप्न साकार...." 


प्रस्तावना -

भारत की आत्मा गाव मे बसती है। भारत को गाँवो का देश कहा जाता यहाँ की लगभग दो तिहाई जनसख्या गाँवो मे निवास करती गाव शब्द का स्मरण करते ही मेरे सम्मुख हरे-भरे खेत, लहराते पेड-पौधे, बहता हुआ पानी व सीधा-साधारण जीवन जीने वाले ल्यातियों का दृश्य आ जाता है आज सम्पूर्ण विश्व का जीवन-यापन केवल सामीठा देखें मे उगाए जाने वाली कसलों से ही होता है। धरती का सच्चा बेटा आरत का किसान नगरों की चकाचौध से तर जीवन से सघंर्ष करते हुए इसरों का पेट अरके अपना पेट भरताहे। महात्मा गांधी ने भी कहा है कि, 

"भारत की आत्मा गावो मे बसती है।गांवो की समस्याओं का समाधान कर इनको विकसित एवं खुशहाल बनाए जाने की आवश्यकता है।" 

ग्रामीण क्षेत्रो का परिदृश्य- 

आजादी से पूर्व मामीठा ऐडो का स्वरूप सामान्य या परन्तु आजादी साप्ती होने केसाव्य गावे द्योरे-धीरे शहरों में परिवर्तित होकर रह गया। वहाँ किसी सकार का कोई ध्यान न देने के कारण आज भारतीय गावे राज्जीतिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से पिहडे हुए है। वहाँ कई ससाधनो केसमाव होने के कारण धीरे- धीरेगा का स्वरुप निरंतर बदलता आ रहाहै। गांधी 

महात्मा गांधी पारा सामस्वराजको माग-मसाल जोक भारत को पूर्णतः आजाद कराने का स्वप्न निरंतर देख रहे थे वह भारत मे स्वराज' अति अपना शासन' की मागे पर बल दे रहे थेगाधी जी का जना प्या की

"भारत की स्वतत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतन्नता है और स्वत्रंता की शुरुमात वि अर्यात ग्रामसे होनी चाहिला"

गाधी जी ने इसी स्वप्न को साकार करने हेतु भारत मे साम पांषतो और ग्ताम समाओं को स्थानीय विकास तया स्थानीय प्रशासन का मुरब्य आधार बनाया गांधी जी का नाम स्वराजस्व्यापित करने का उद्देश्य भारत मे रहने पाले हर व्यक्ति को समानता की तरा मे तोलना था। 

सामस्वराजका महत्व- 

सामस्तराजस्यापता होने का उदेश्य प्रात्येक गाव मे गहाराज्य के सभी गुण व्याप्त होना जिसमे स्वालम्बन, स्तशासन आवश्यकतानुसार स्वतता और विकेन्द्रीकरण तव्या कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के सभी आकार पचायत के पास होगाधी जी का मानना है कि अगर गात से विकास की शुरुआत हो तो सम्पूर्ण भारत स्ततः ही विकसित हो जाएगा साम स्तराज स्यापित करने के पीहे आत्मानिर्मरता बडा पहलू है अर्षात स्वयं का उत्पादन, शिक्षा और आर्थिक सम्पनता। 

उपसहार-मारतीयों की नीवं गाते हैं जिस सकार किसी मकान को मजबूत खडा होने के लिए मनस्तनींव की आवश्यकता होती है उसी सकार आस्तु यदि पूतिः आत्मनिर्भरता, विकसित राष्ट्र का स्वप्न देखता है तो इसकी नीव गात को मजब्त, रासम्त करना नितांत आवश्यक अतः वर्तमान समय मेगाधी जी के ग्राम स्वराज के स्वप्न सारा ही भारतीय मानचित्र को विश्व मे कोहिनूर की मांति चमकाया जा सकता। 


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THANK YOU SO MUCH

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