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Swatantrta Ka Humare Jeevan Me Mahatva Essay

 


Swatantrta Ka Humare Jeevan Me Mahatva Essay



Swatantrta Ka Humare Jeevan Me Mahatva Essay


"हमारे जीवन में स्वतन्त्रता का महत्व"

हमारे जीवन में स्वतन्त्रता का बहुत अधिक महत्व है।स्वतन्त्रता के बिना जीवन महत्वहीन सा लगने लगता है। एक प्रसिद्ध कहावत है-"पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं" अर्थात पराधीन व्यक्ति को स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं होता है। यानि कि पराधीन व्यक्ति के लिए सुख का अनुभव करना बिल्कुल ही असंभव है। इसी कहावत के माध्यम से भली प्रकार से स्वतन्त्रता का महत्व समझ में आ जाता है।

हमारे जीवन में स्वतन्त्रता का महत्व-

किसी भी व्यक्ति के लिए उसका स्वतंत्र होना बाकी सभी आवश्यकताओं से सर्वोपरि होता है। जब व्यक्ति स्वतंत्र होगा तब वह अपनी इच्छा से सभी कार्य कर सकेगा।

वह अपनी इच्छा से ही खा-पी सकेगा, घूम फिर सकेगा, अपनी इच्छा से ही वह धनार्जन करके उस धन को अपनी मर्जी से ही खर्च करेगा।

एक स्वतंत्र व्यक्ति किसी भी विषय पर अपने विचार व्यक्त कर सकता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति किसी का गुलाम बनकर रहेगा तो उसे उसी के अनुसार खाना-पीना, उठना-बैठना, कहीं आना-जाना, कोई भी कार्य करना इत्यादि करना पड़े। यहां तक की गुलाम व्यक्ति का मेहनत से कमाया हुआ धन भी उसका अपना नहीं होता। ऐसी जिंदगी भी क्या जीने लायक है....? नहीं बिल्कुल भी नहीं!

हम मनुष्यों को जीवन बस एक ही बार मिलता है। फिर क्यूं इस अनमोल जीवन को किसी की गुलामी में गुजार दें। अपने हृदय से पूछ कर देखिए.... जवाब ना में ही आएगा। गुलामी तो एक पक्षी को भी स्वीकार नहीं होती फिर हम मनुष्य आखिर क्यों किसी की गुलामी करें....

गुलामी भरा जीवन बेहद ही कष्टों से भरा होता है। उदाहरण के तौर पर हम अंग्रेजों की 200 वर्षों की गुलामी को याद कर सकते हैं।

हम भारतीयों ने कितनी यातनाएं झेली थी। वो जीवन अत्यधिक कष्टमय था, तभी तो उस गुलामी भरे जीवन से मुक्ति पाने हेतु देशवासियों ने कड़ा संघर्ष किया था।

हम तो एक आजाद देश में पैदा हुए हैं, किंतु हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों की गुलामी देखी थी।

उन गुलामी की जंजीरों को तोड़ने हेतु असंख्य प्रयास भी किए कुछ प्रयास सफल हुए तो कुछ असफल भी हुए थे। अनेक देशभक्तों ने अपनी जान वतन को आजाद कराने हेतु कुर्बान कर दी।

बहुत से देशभक्तों ने अंग्रेजों को लाठियां-डंडे और गोलियां तक खाई। तब जाकर हमें यह आजादी नसीब हुई। सच में, जीवन में आजादी यानि कि स्वतन्त्रता का होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

उपसंहार-

हमारे स्वतन्त्रता सेनानियों के कारण हमें स्वतंत्र भारत में पूर्ण स्वतंत्रता के साथ रहने को मिला है।

हमें खुद को सौभाग्यशाली समझना चाहिए और उन वीर देशभक्तों का धन्यवाद करना चाहिए। आज हम स्वतन्त्रता के साथ कुछ भी कर सकते हैं, क्योंकि हम आजाद हैं।

देश आज हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है, क्योंकि देश आजाद है, पूर्णतया स्वतंत्र है। गुलामी हर किसी के विकास में बाधक होती है, चाहे वह देश हो या देश में रहने वाला नागरिक!

अतः हमें जीवन में स्वतन्त्रता के महत्व को समझना चाहिए और इसे बनाए रखने के हर सम्भव प्रयास करते रहना चाहिए। साथ ही देश की स्वतंत्रता की रट : हेतु हमें स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल देना चाहिए चार हमेशा देशहित में ही कार्य करते रहना चाहिए।

"स्वतन्त्रता है अनमोल, महत्व को इसके समझिए, जीवन हो चाहे देश गुलामी को हमेशा त्यजिए।"


Swatantrta Ka Humare Jeevan Me Mahatva Essay


"भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर निबंध"

"जब देश की आजादी हेतु थे हुए वीर कुर्बान, नम आँखों से याद करते हम वो स्वतन्त्रता संग्राम।"

हमारे देश भारत के इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक अति महत्वपूर्ण घटना है। यह वही संग्राम है जिसने अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े हमारे भारत देश को स्वतन्त्रता दिलाई थी। असंख्य देशभक्तों ने स्वतन्त्रता के इस महासंग्राम में अपना योगदान दिया।

अंग्रेजों का आगमन-

भारत में अंग्रेज सन 1600 ई० में पार करने के उद्देश्य से आये थे। उन्होने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से यहां रेशम, कपास, चाय का व्यापार शुरू किया और धीरे-धीरे भारत को लूटना शुरू किया। फूट डालो और राज करो की नीति से उन्होंने भारतीयों को अपना गुलाम बना लिया।

अंग्रेजों की अराजकता से तंग आकर देशवासियों ने एकजुट होकर राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया और राष्ट्र को स्वतंत्र कराने का निश्चय किया। देशवासियों द्वारा अलग-अलग तरीके से राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के प्रयास किए जाने लगे। इन्ही प्रयासों को स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दो भागों में बांटा जा सकता है


प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम-

सर्वप्रथम अंग्रेजों के खिलाफ मंगल पांडे ने आन्दोलन की शुरुआत की थी। वे बंगाल के बैरकपुर में तैनात एक भारतीय सिपाही थे, उन्होंने गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूसों का प्रयोग करने के लिए साफ मना कर दिया और दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर विद्रोह की शुरुआत कर दी।

बाद में उन्हें फांसी दे दी गयी थी। लेकिन उन्होंने विद्रोह की आग देशवासियों के दिलों में पूर्णतया जला दी थी।

इसके तुरंत बाद मेरठ के सिपाहियों ने भी भारी संख्या में विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में सिपाहियों को देश की तमाम बड़ी रियासतों का साथ मिला। झांसी की रानी भी इसी विद्रोह के दौरान लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई थी। इस विद्रोह पर अंग्रेज सरक द्वारा एक वर्ष के भीतर ही काबू पा लिया गया।


द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम-

1857 के विद्रोह की असफलता के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल चुकी थी। देश भर में विद्रोह की आग भड़क रही थी। कुछ गर्म दल के समर्थक थे तो कुछ नर्म दल को मानते थे।

किंतु दोनों ही दलों का मकसद सिर्फ एक था और वो था- अंग्रेजों का देश से निष्कासन और स्वतन्त्रता की प्राप्ति।

गर्म दल के नेताओं में प्रमुख थे- बाल गंगाधर तिलका स्वराज,स्वदेशी और अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे शब्दों का प्रयोग उन्ही के द्वारा सर्वप्रथम किया गया था। विपिन चंद्रपाल और लाला लाजपतराय भी गर्म दल के नेता थे।

1915 में भारत लौटे गाँधीजी ने सर्वप्रथम 1917-1918 के दौरान चंपारण आंदोलन कर नील की खेती करने वाले किसानों पर अंग्रेजों द्वारा हो रहे अत्याचारों को बंद करवाया।

इसके बाद गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन के जरिए एक बार फिर आजादी की अलख जगाई। 1920 में इस आंदोलन के द्वारा गाँधीजी ने स्वराज की मांग की।

क्रांतिकारी आंदोलन का दूसरा चरण 1924 से 1934 के बीच माना जाता है। चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई में नए अध्याय जोड़े। पहले काकोरी कांड और फिर लाहौर में सांडर्स की हत्या। 1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह तथा दांडी यात्रा की शुरुआत कर दी।

24 दिन की यात्रा के बाद गाँधीजी ने समुंद्र तट पर जाकर अवैध नमक बनाया और इस तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 1931 में भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दे दी गयी।

आजादी की लड़ाई में एक और नाम था -सुभाषचंद्र बोस, जिन्होंने आजादी पाने हेतु सीधे युद्ध को चुनना ही बेहतर समझा। वे सिविल सर्विसेज की पढ़ाई हेतु इंग्लैंड गए थे किंतु जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में सुनकर भारत वापिस लौट आए थे और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। वर्ष 1942 में गाँधीजी के द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की गई। गाँधीजी और उनके समर्थकों को जेल जाना पड़ा।

दो वर्ष बाद जेल से छूटने के बाद उन्होंने यह आंदोलन वापिस ले लिया। भारतवासियों के जज्बे और विद्रोहों को देखते हुए आखिरकार अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का फैसला का लिया। कड़े संघर्षों के बाद स्वतन्त्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों का बलिदान रंग लाया और 15 अगस्त 1947 के दिन भारत आजाद हो गया। लेकिन यह आजादी हमें विभाजन के साथ ही मिल पाई।

उपसंहार

भारत की आजादी की लड़ाई में असंख्य देशभक्तों ने अपना योगदान दिया था। असंख्य ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने स्वतंत्रता के महासंग्राम को बल दिया। आज जब भी हम भारतवासी उन वीर गाथाओं को पढ़ते या सुनते हैं हमारी आंखे नम हो जाती हैं।

सच में बहुत ही कड़े संघर्षों और बलिदानों से भरा पड़ा है- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम! बहुत ही मूल्यवान है भारत की आजादी! हमें इस आजादी के मूल्य को समझते हुए इसे बरकरार रखना है और देश हित में ही कार्य करने हैं।

हमें यूं ही नहीं मिली है ये आजादी, ना जाने कितनी मूल्यवान जानों की हुई थी बर्बादी!


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